रांची
आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद् (AKSP) झारखंड में झारखंड पंचायत राज अधिनियम (JPRA) 2001 एवं पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम (PESA) 1996 को लेकर राज्य सरकार के द्वारा सृजित बहस पर अपना पक्ष रखते हुए इसके समाधान के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत करता है।
1. झारखंड सरकार के पंचायती राज विभाग ने JPRA 2001 को अनुसूचित क्षेत्र के लिए संवैधानिक रूप से वैध बताया है, जो सरासर गलत है। क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-243एम4बी के तहत अनुसूचित क्षेत्र के लिए पंचायत के उपबंध को विस्तार करने का अधिकार सिर्फ संसद के पास है। इसलिए राज्य विधानमंडल कानून नहीं बना सकता है। झारखंड सरकार ने नियमावली बनाकर 'पंचायत के उपबंध का अनुसूचित क्षेत्र में विस्तार करने के बजाय सम्पूर्ण पंचायत का ही विस्तार किया है, जो असंवैधानिक है।
2. पंचायती राज विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट सिविल अपील सं. 484 एड 491 ऑफ 2001 राकेश कुमार एवं अन्य बनाम भारत सरकार और झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश पीआईएल स. 2549 ऑफ 2010 प्रभु तैमुएल सुरीन बनाम झारखंड सरकार का आधार लेकर कहा है कि न्यायालयों ने अनुसूचित क्षेत्र के लिए JPRA 01 को वैध माना है, जो सच है।
1 सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ पेसा कानून 1996" की धारा-4 (जी) जो आरक्षण से संबंधित है, उसे वैध ठहराया था, उसमें JPRA 2001" को वैध ठहराने वाली कोई बात नहीं थी। झारखंड उच्च न्यायालय ने भी "JPRA 2001" को अनुसूचित क्षेत्र के लिए वैध नहीं ठहराया था बल्कि यह कहा था कि इसमें पेसा कानून 1996 को पूर्णरूप् से शामिल किया गया है।
2 झारखंड उच्च न्यायालय का उब्ल बेंच ने 29 जुलाई 2024 को "रिट याचिका नं. 4456 ऑक 2021. 49 ऑफ 2021 एवं 15 ऑफ 2021 के मसले पर अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि झारखंड राज्य के गठन से पहले से ही पेसा कानून 1996 लागू था बावजूद इसके राज्य गठन के बाद JPRA 2001" लाया गया, जो पैसा कानून 1996 के अनुरूप नहीं है। इसलिए न्यायालय ने राज्य सरकार को दो महीने के अंदर पेसा कानून 1996 की नियमावली बनाकर उसे राज्य के अनुसूचित क्षेत्र में लागू करने का आदेश दिया है। यदि "JPRA 2001" वैध होता तो न्यायालय को नया आदेश देने की जरूरत नहीं होती।
3. पंचायती राज विभाग के अनुसार देश के 10 अनुसूचित राज्यों में से 8 राज्यों में बने पंचायत कानूनों के तर्ज पर ही JPRA 2001" बनाया गया है इसलिए यह सही है। इसमें दो बातें हैं पहला तो यह कि क्या पंचायती राज विभाग यह बताना चाहता है कि चूंकि 8 राज्यों ने असंवैधानिकरूप से अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत कानून लागू किया है इसलिए झारखंड को भी उसी रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए? और दूसरी बात यह है कि इसमें सच को छुपा लिया गया है क्योंकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के अनुसूचित क्षेत्रों में "पेसा कानून 1996 लागू है न कि सामान्य क्षेत्रों के पंचायत कानून।
4. छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्य का निर्माण एक ही साथ हुआ है। इसलिए दोनों राज्यों के कानूनों को एक साथ देखने से यह स्पष्ट है कि झारखंड सरकार की मंशा "पेसा कानून 1996 को लागू करने की नहीं है बल्कि 'JPRA 01" को ही "पेसा कानून 1996 बताकर एक अलग 'नियमावली" के द्वारा लागू करने की कोशिश की जा रही है। यह भारतीय संविधान अनुसूचित क्षेत्र और आदिवासियों के साथ सरासर धोखा है।
1. छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा-1 उपधारा-2 में अनुसूचित क्षेत्र एवं इसके उपबंध 14क का स्पष्ट जिक्र है जबकि JPRA 01 की धारा-1 उपधारा-2 में अनुसूचित क्षेत्र या इसके उपबंध के बारे में कोई जिक्र नहीं है।
2. . "छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा-1 उपधारा-2 के द्वारा इस कानून को पूरे राज्य में लागू किया गया है जबकि JPRA 01 में नगरपालिका एक सेना की छाडनी क्षेत्र' को पंचायत कानून से बाहर रखा गया है. पजबकि अनुसूचित क्षेत्र के बारे में कोई जिक्र नहीं है। यह केन्द्रीय "पेसा कानून 1996 के खिलाफ है।
5. क्या झारखंड सरकार राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून 1990 की लागू करने के लिए ही झारखंड पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियमावली 2024 बनायी है या इसके द्वारा "JPRA 2001 को अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करने का षड्यंत्र है? पंचायती राज विभाग बार-बार क्यों JPRA 2001" का राग अलाप रही है? सरकार की मंशा क्या है? उपरोका सवालों का जवाब छत्तीसगढ़ पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियम 2022 और प्रस्तावित "झारखंड पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियमावली 2024 के कुछ प्राक्धानों में निहित है।
1. "छत्तीसगढ़ पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार नियम 2022 के प्रावधान-2 उप-प्रावधान-1 में अधिनियम से अभिप्रेत है पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम, 1996 संख्यांक 40 जबकि झारखंड पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियमावली 2024 प्रावधान 2 उप-प्रावधान-1 में अधिनियम से अभिप्रेत है झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 यानी JPRA 2001। इसे स्पष्ट है कि झारखंड पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियमावली 2024" के द्वारा JPRA 2001 के उपबंध को ही झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में लागू किया जायेगा।
2. "JPRA 2001 की धारा-131 उपधारा-1 के द्वारा झारखंड पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियमावली 2024" बनाया जा रहा है। जबकि JPRA 2001 की धारा-131 उपधारा-2 में के अंतिम वाक्य में स्पष्ट उल्लेखित है कि इस अधिनियम के तहत बनाया गया प्रत्येक नियम इस अधिनियम में अधिनियमित होने के समान प्रभावी होगा। अतः पेसा कानून 1996 की नियमावली उपरोक्त धारा के तहत नहीं बनाया जा सकता है।
6. संसद एवं विधानमंडल के द्वारा अधिनियमित कानून व सामान्य कानून एवं विशेष कानून के बीच टकराहट होने की स्थिति में कौन सा कानून प्रभावी होगा?
1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद-254 के अनुसार संसद द्वारा पारित कानून को प्राथमिकता दी जायेगी। और यदि विधानमंडल का कानून लागू करना पड़े उस परिस्थिति में राष्ट्रपति की अनुमति लेनी होगी।
2 सप्रीम कोर्ट ने 'आरएस रघुनाथ बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक 1992 1 एससीसी 335, में स्पष्ट कहा है कि विशेष कानून हमेशा सामान्य कानून के उपर प्रभावी होगा। अनुसूक्ति क्षेत्र के लिए 'पेसा कानून 1996 विशेष कानून है एवं JPRA 01 सामान्य कानून इसलिए झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून 1996 ही मान्य है।
झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के द्वारा असंवैधानिक 7 तरीके से सामान्य पंचायत कानून 'JPRA 2001 को राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में थोपने वाली कुकर्म को छुपाने के लिए RSS की सामाजिक यूनिट जनजाति सुरक्षा मंच के द्वारा सरना-ईसाई का बखेड़ा खड़ा किया गया है, जिसकी हम भर्त्सना करते हैं।
हमारी मांगें -
1. झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 की धारा-1 (ii) का संशोधन करते हुए इसे झारखंड के गैर-अनुसूचित क्षेत्र में लागू करना चाहिए।
2. झारखंड उच्च न्यायालय के द्वारा 29 जुलाई 2024 को दिये गये आदेश के आलोक में केन्द्र सरकार या राज्यपाल से अनुमति प्राप्त कर पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियमावली 2024" राज्य के अनुसूचित क्षेत्र में तुरंत लागू किया जाना चाहिए।
3. JPRA 2001" और "पेसा कानून 1996" के मसले पर संवैधानिक एवं कानूनी रूप से अपनी आवाज उठाने वाले आदिवासियों पर सरकार आरोप लगाना बंद करे।